Social issues

लाॅकडाउन

एक कहानी ऐसी भी हम कभी
अपने यारों के संग बांटेंगे,
उस एक पल की जब लाॅकडाउन से
थम गए थे हर एक बढ़ते कदम;
जब डर और ख़ामोशी ने हर गली में
डाला था अपना डेरा,
पर तभी तो हमने सीखा था
मिल बांटकर रहने का जायका।

हर जुबान पर था एक ही बात
की ये महामारी न हो पाए आबाद,
‘सोशल डिस्टेंसिंग’ ‘सैनिटाइजर’ के चर्चे थे
हर जगह, अखबार और टीवी चैनल पे;
भगवान के घर पर भी न था कोई बसेरा,
उम्मीद की किरण बस ‘वैक्सीन’ से था जुड़ा;
दोस्त अब मिलते नहीं कैंटीन में,
पढ़ते है उस बेजान लेपटॉप को निहारते हुए।

लाॅकडाउन ने था बदला हर बात
और मौका दिया सबको करने
समय का सही इस्तेमाल;
किसी ने समझा क्या है अपनों का साथ,
तो किसी ने निकाला अपना पुराना गिटार
और छेड़ा धुन नये हज़ार;
बुरा वक़्त है ये बित जाएगा ज़रूर
पर अपने साथ दे जाएगा
यादों के काफिले कुछ मशहूर।

2 thoughts on “लाॅकडाउन

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